श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.20.13 
 
 
जलस्थलौकस: सर्वे नववारिनिषेवया ।
अबिभ्रन् रुचिरं रूपं यथा हरिनिषेवया ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे कोई भक्त भगवान् की सेवा में लगने पर सुंदर लगने लगता है, वैसे ही भूमि और जल के सभी प्राणियों ने गिरी हुई वर्षा का लाभ उठाया और उनके रूप आकर्षक और मनभावन हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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