वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
»
अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु
»
श्लोक 13
श्लोक
10.20.13
जलस्थलौकस: सर्वे नववारिनिषेवया ।
अबिभ्रन् रुचिरं रूपं यथा हरिनिषेवया ॥ १३ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
जैसे कोई भक्त भगवान् की सेवा में लगने पर सुंदर लगने लगता है, वैसे ही भूमि और जल के सभी प्राणियों ने गिरी हुई वर्षा का लाभ उठाया और उनके रूप आकर्षक और मनभावन हो गए।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.