गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोपगोभिरलङ्कृतम् ।
रोहिणी वसुदेवस्य भार्यास्ते नन्दगोकुले ।
अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ॥ ७ ॥
अनुवाद
भगवान ने योगमाया को आज्ञा दी: हे समस्त जगत् द्वारा पूजनीय और सभी प्राणियों को सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति, तुम व्रज जाओ जहाँ अनेक ग्वाले और उनकी पत्नियाँ रहती हैं। उस अत्यंत सुंदर भूमि में जहाँ अनेक गायें निवास करती हैं, वसुदेव की पत्नी रोहिणी, नंद महाराज के घर में निवास कर रही हैं। वसुदेव की अन्य पत्नियाँ भी कंस के भय से वहीं गुप्त रूप से रह रही हैं। कृपा करके वहाँ जाओ।