श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 2: देवताओं द्वारा गर्भस्थ कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  10.2.34 
 
 
सत्त्वं विशुद्धं श्रयते भवान् स्थितौ
शरीरिणां श्रेयउपायनं वपु: ।
वेदक्रियायोगतप:समाधिभि-
स्तवार्हणं येन जन: समीहते ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे परमेश्वर, पालन करते समय आप अनेक दिव्य अवतारों को प्रकट करते हैं जिनके शरीर प्रकृति के तीनों गुणों से परे हैं। इस प्रकार से प्रकट होने पर आप जीवों को सौभाग्य प्रदान करते हैं तथा उन्हें वैदिक अनुष्ठानों, योग, तपस्या, और ध्यान साधनाओं को निष्पादित करने की शिक्षा देते हैं। इस प्रकार से आपकी पूजा वैदिक विधियों के अनुसार की जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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