श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 2: देवताओं द्वारा गर्भस्थ कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  10.2.18 
 
 
ततो जगन्मङ्गलमच्युतांशंसमाहितं शूरसुतेन देवी ।
दधार सर्वात्मकमात्मभूतंकाष्ठा यथानन्दकरं मनस्त: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  इसके बाद, पूर्ण ऐश्वर्यों से युक्त, सर्वमंगलमय भगवान् श्री हरि अपने समस्त स्वांशों के साथ वसुदेव के मन से देवकी के मन में स्थानांतरित हो गये। देवकी को वसुदेव जी से दीक्षा मिलने पर सभी की आदि चेतना और समस्त कारणों के कारण भगवान श्रीकृष्ण को अपने मन में धारण करने के कारण सुंदर बन गईं, जिस तरह उदित चंद्रमा के साथ पूर्व दिशा सुंदर दिखाई देती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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