श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 18: भगवान् बलराम द्वारा प्रलम्बासुर का वध  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.18.6 
 
 
अगाधतोयह्रदिनीतटोर्मिभि-
र्द्रवत्पुरीष्या: पुलिनै: समन्तत: ।
न यत्र चण्डांशुकरा विषोल्बणा
भुवो रसं शाद्वलितं च गृह्णते ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  गहरी नदियाँ अपनी उठती लहरों से अपने किनारों को भिगोकर उन्हें गीला और कीचड़युक्त बना देती थीं। इस तरह, जहर की तरह तेज धूप की किरणें न तो धरती के रस को सुखा पातीं और न ही इसकी हरी घास को झुलसा पातीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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