श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ » अध्याय 17: कालिय का इतिहास » श्लोक 5 |
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| | श्लोक 10.17.5  | |  | | तच्छ्रुत्वा कुपितो राजन् भगवान् भगवत्प्रिय: ।
विजिघांसुर्महावेग: कालियं समुपाद्रवत् ॥ ५ ॥ | | अनुवाद | | हे राजन्, जब भगवान के अत्यन्त प्रिय परम शक्तिशाली गरुड़ ने यह सुना तो वह क्रोधित हो उठा। वह कालिय को मारने के लिए उसकी ओर तेज गति से झपट्टा मारने लगा। | |
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