श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 17: कालिय का इतिहास  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.17.4 
 
 
विषवीर्यमदाविष्ट: काद्रवेयस्तु कालिय: ।
कदर्थीकृत्य गरुडं स्वयं तं बुभुजे बलिम् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि अन्य सभी सर्प श्रद्धापूर्वक गरुड़ को भेट बनाते थे, किन्तु एक सर्प, कद्रु का पुत्र अभिमानी कालिय, इन सभी भेंटों को गरुड़ के आने से पहले ही खा जाता था। इस तरह से कालिय ने भगवान विष्णु के वाहन का सीधा अपमान किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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