विषवीर्यमदाविष्ट: काद्रवेयस्तु कालिय: ।
कदर्थीकृत्य गरुडं स्वयं तं बुभुजे बलिम् ॥ ४ ॥
अनुवाद
यद्यपि अन्य सभी सर्प श्रद्धापूर्वक गरुड़ को भेट बनाते थे, किन्तु एक सर्प, कद्रु का पुत्र अभिमानी कालिय, इन सभी भेंटों को गरुड़ के आने से पहले ही खा जाता था। इस तरह से कालिय ने भगवान विष्णु के वाहन का सीधा अपमान किया।