सुदुस्तरान्न: स्वान् पाहि कालाग्ने: सुहृद: प्रभो ।
न शक्नुमस्त्वच्चरणं सन्त्यक्तुमकुतोभयम् ॥ २४ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, हम आपके सच्चे सखा और भक्त हैं। कृपा करके इस अजेय मृत्यु रूपी अग्नि से हमारी रक्षा करें, हम आपके उन चरणकमलों को कभी नहीं छोड़ सकते जो सभी भय को दूर भगाते हैं।