श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.16.8 
 
 
तस्य ह्रदे विहरतो भुजदण्डघूर्ण-
वार्घोषमङ्ग वरवारणविक्रमस्य ।
आश्रुत्य तत् स्वसदनाभिभवं निरीक्ष्य
चक्षु:श्रवा: समसरत्तदमृष्यमाण: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  कालिय-सरोवर में कृष्ण अपनी विशाल भुजाओं को घुमाते हुए और तरह-तरह से पानी में शोर पैदा करते हुए, शाही हाथी की तरह खेलने लगे। जब कालिय ने ये आवाज़ें सुनीं तो वह समझ गया कि कोई उसके सरोवर में घुस आया है। साँप इसे बर्दाश्त नहीं कर सका और तुरंत ही सामने आ गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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