श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.16.7 
 
 
सर्पह्रद: पुरुषसारनिपातवेग-
सङ्‌क्षोभितोरगविषोच्छ्वसिताम्बुराशि: ।
पर्यक्‍प्लुतो विषकषायबिभीषणोर्मि-
र्धावन् धनु:शतमनन्तबलस्य किं तत् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  जब सर्प के सरोवर में भगवान विष्णु उतरे, तो वहाँ के सर्प बेहद उत्तेजित हो गये और भारी मात्रा में साँस लेने लगे, जिससे विष की मात्रा और अधिक बढ़ गयी। भगवान के प्रवेश की शक्ति से सरोवर चारों ओर उमड़ने लगा और एक सौ धनुष की दूरी तक फैली जमीन पर भयानक और विषैली लहरें आ गयीं। लेकिन, अनंत शक्ति रखने वाले भगवान के लिए यह ज़रा भी आश्चर्यजनक नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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