श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  10.16.49 
 
 
त्वं ह्यस्य जन्मस्थितिसंयमान् विभो
गुणैरनीहोऽकृतकालशक्तिधृक् ।
तत्तत्स्वभावान् प्रतिबोधयन् सत:
समीक्षयामोघविहार ईहसे ॥ ४९ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सर्वशक्तिमान प्रभु, यद्यपि तुम्हें भौतिक कर्म में फँसने का कोई कारण नहीं है, तथापि तुम अपनी शाश्वत कालशक्ति के माध्यम से इस ब्रह्माण्ड के सृजन, पालन और संहार की व्यवस्था करते हो। तुम इसे सृजन से पहले प्रकृति के प्रत्येक गुण की विशिष्ट कार्य करने की क्षमता को जाग्रत करते हुए सम्पन्न करते हो। इन ब्रह्माण्ड-नियंत्रण के सभी कार्यों को तुम खेल से खेल में मात्र अपनी दृष्टि से ही पूर्णतया सम्पन्न कर लेते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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