श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.16.4 
 
 
श्रीशुक उवाच
कालिन्द्यां कालियस्यासीद् ह्रद: कश्चिद् विषाग्निना ।
श्रप्यमाणपया यस्मिन् पतन्त्युपरिगा: खगा: ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: कालिन्दी (यमुना) नदी के भीतर एक सरोवर था जिसमें कालिय नाग रहता था। उस नाग के अग्नि-तुल्य विष से उस सरोवर का जल निरन्तर उबलता रहता था। इस तरह से उत्पन्न भाप इतनी विषैली होती थी कि दूषित सरोवर के ऊपर से उड़नेवाले पक्षी उसमें गिर पड़ते थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.