श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  10.16.36 
 
 
कस्यानुभावोऽस्य न देव विद्महे
तवाङ्‍‍‍‍‍घ्रिरेणुस्परशाधिकार: ।
यद्वाञ्छया श्रीर्ललनाचरत्तपो
विहाय कामान् सुचिरं धृतव्रता ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, हमें नहीं मालूम कि इस कालिय सर्प को कैसे वहान का मौका मिल गया कि वह आपके चरणकमलों की धूल को स्पर्श कर सके। इसके लिए तो लक्ष्मी जी ने सारी मनोकामनाएँ त्यागकर सैकड़ों वर्षों तक कठोर व्रत रखते हुए तपस्या की थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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