श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.16.32 
 
 
तास्तं सुविग्नमनसोऽथ पुरस्कृतार्भा:
कायं निधाय भुवि भूतपतिं प्रणेमु: ।
साध्व्य: कृताञ्जलिपुटा: शमलस्य भर्तु-
र्मोक्षेप्सव: शरणदं शरणं प्रपन्ना: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  अत्यंत व्याकुल मन से उन साध्वी स्त्रियों ने अपने बच्चों को अपने सामने रखा और फिर समस्त प्राणियों के स्वामी के आगे भूमि पर लेटकर साष्टांग प्रणाम किया। वे अपने पापी पति के लिए मोक्ष और परम शरणदाता भगवान की शरण चाहती थीं, इसलिए उन्होंने विनम्रता से हाथ जोड़कर उनके निकट पहुँच गईं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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