श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  10.16.31 
 
 
कृष्णस्य गर्भजगतोऽतिभरावसन्नं
पार्ष्णिप्रहारपरिरुग्नफणातपत्रम् ।
द‍ृष्ट्वाहिमाद्यमुपसेदुरमुष्य पत्‍न्य
आर्ता: श्लथद्वसनभूषणकेशबन्धा: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  जब कालिय की पत्नियों ने देखा कि भगवान् कृष्ण जिनके पेट में सारा ब्रह्मांड समाहित है, उनके अत्यधिक भार से कालिय सर्प कितना थक गया है और कृष्ण की एडियों के प्रहार से कालिय के छाते जैसे फन छिन्न-भिन्न हो गए हैं, तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। तब अपने वस्त्र, आभूषण और बालों को बिखराकर वे आदि भगवान के पास आईं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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