श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  10.16.21 
 
 
ता: कृष्णमातरमपत्यमनुप्रविष्टां
तुल्यव्यथा: समनुगृह्य शुच: स्रवन्त्य: ।
तास्ता व्रजप्रियकथा: कथयन्त्य आसन्
कृष्णाननेऽर्पितद‍ृशो मृतकप्रतीका: ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  हालाँकि प्रौढ़ गोपियों को भी उतना ही दुःख हो रहा था और उनके आँसू बह रहे थे, किंतु उन्होंने बलपूर्वक कृष्ण की माता को रोक रखा था, जिनकी चेतना पूरी तरह से अपने पुत्र में लीन हो गई थी। ये गोपियाँ शवों की तरह खड़ी रहीं, अपनी आँखें कृष्ण के चेहरे पर टिकाए हुए, और बारी-बारी से व्रज के परम प्रिय कृष्ण की लीलाओं का वर्णन कर रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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