श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 15: धेनुकासुर का वध  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.15.27 
 
 
एवं सुहृद्वच: श्रुत्वा सुहृत्प्रियचिकीर्षया ।
प्रहस्य जग्मतुर्गोपैर्वृतौ तालवनं प्रभू ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने प्रिय सखाओं की बातें सुनकर कृष्ण तथा बलराम हँस पड़े और उन्हें प्रसन्न करने के विचार से अपने ग्वालमित्रों के साथ तालवन के लिए प्रस्थान कर गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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