श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 15: धेनुकासुर का वध  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.15.17 
 
 
पादसंवाहनं चक्रु: केचित्तस्य महात्मन: ।
अपरे हतपाप्मानो व्यजनै: समवीजयन् ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  तब कुछ ग्वालबाल, जो सब के सब महान आत्माएँ थे, उनके चरणकमलों की मालिश करते और अन्य ग्वालबाल निष्पाप होने के कारण बड़ी कुशलतापूर्वक भगवान् पर पंखा झलते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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