श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  10.14.56 
 
 
वस्तुतो जानतामत्र कृष्णं स्थास्‍नु चरिष्णु च ।
भगवद्रूपमखिलं नान्यद् वस्त्विह किञ्चन ॥ ५६ ॥
 
अनुवाद
 
  इस जग में जो लोग भगवान श्री कृष्ण को उनके यथार्थ स्वरूप में समझते हैं, उनके लिए समस्त चर-अचर सृष्टि भगवान का ही व्यक्त रूप है। ऐसे ज्ञानी लोग भगवान श्री कृष्ण के सिवाय किसी अन्य सत्यता को नहीं मानते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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