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अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति
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श्लोक 51
श्लोक
10.14.51
तद् राजेन्द्र यथा स्नेह: स्वस्वकात्मनि देहिनाम् ।
न तथा ममतालम्बिपुत्रवित्तगृहादिषु ॥ ५१ ॥
अनुवाद
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इसी कारण हे राजाओं में श्रेष्ठ, देहधारी जीव आत्म केन्द्रित रहता है। वह अपने बच्चों, धन और घर आदि वस्तुओं से ज्यादा अपने शरीर और खुद से जुड़ा रहता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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