श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.14.5 
 
 
पुरेह भूमन् बहवोऽपि योगिन-
स्त्वदर्पितेहा निजकर्मलब्धया ।
विबुध्य भक्त्यैव कथोपनीतया
प्रपेदिरेऽञ्जोऽच्युत ते गतिं पराम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सर्वशक्तिमान, भूतकाल में इस संसार में अनेक योगीजनों ने अपने कर्तव्य निभाते हुए तथा अपने सारे प्रयासों को आपको समर्पित करते हुए भक्तिपद प्राप्त किया है। हे अच्युत, आपके गुणों की चर्चा और कीर्तन करने से युक्त ऐसी भक्ति के माध्यम से वे आपको जान पाये और आपकी शरण में जाकर आपके परमधाम को प्राप्त कर सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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