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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति
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श्लोक 41
श्लोक
10.14.41
श्रीशुक उवाच
इत्यभिष्टूय भूमानं त्रि: परिक्रम्य पादयो: ।
नत्वाभीष्टं जगद्धाता स्वधाम प्रत्यपद्यत ॥ ४१ ॥
अनुवाद
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शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस प्रकार स्तुति वंदना करने के बाद ब्रह्माजी ने अपने परमेश्वर, अनंत भगवान् की तीन बार परिक्रमा की और फिर उनके चरणों में नतमस्तक हुए। इसके बाद ब्रह्माण्ड के नियुक्त रचयिता अपने निवास पर लौट आये।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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