श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.14.30 
 
 
तदस्तु मे नाथ स भूरिभागो
भवेऽत्र वान्यत्र तु वा तिरश्चाम् ।
येनाहमेकोऽपि भवज्जनानां
भूत्वा निषेवे तव पादपल्लवम् ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस जीवन में या अगले जन्म में, चाहे मैं जहाँ भी और जिस भी रूप में जन्म लूं, मैं आपके भक्तों में से एक माना जाऊँ। मेरी इच्छा है कि जहाँ भी रहूँ, चाहे जानवरों के रूप में ही क्यों न हो, मैं आपके चरणकमलों की भक्ति में लग सकूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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