त्वामात्मानं परं मत्वा परमात्मानमेव च ।
आत्मा पुनर्बहिर्मृग्य अहोऽज्ञजनताज्ञता ॥ २७ ॥
अनुवाद
बस उन अज्ञानी व्यक्तियों की मूर्खता पर गौर करो जो तुम्हें मोह का अलग प्रकटीकरण मानते हैं और स्वयं को, जो वास्तव में तुम हो, कुछ और—भौतिक शरीर—मानते हैं। ऐसे मूर्ख निष्कर्ष निकालते हैं कि परम आत्मा को तुम्हारे परम व्यक्तित्व से बाहर कहीं और खोजा जाना है।