श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.14.2 
 
 
अस्यापि देव वपुषो मदनुग्रहस्य
स्वेच्छामयस्य न तु भूतमयस्य कोऽपि ।
नेशे महि त्ववसितुं मनसान्तरेण
साक्षात्तवैव किमुतात्मसुखानुभूते: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभो, न तो मैं, और न ही कोई दूसरा व्यक्ति आपके इस दिव्य शरीर की शक्ति की गणना कर सकता है, जिसने मुझ पर इतनी कृपा की है। आपका यह दिव्य शरीर आपके शुद्ध भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रकट हुआ है। यद्यपि मेरा मन भौतिक कार्यों से पूरी तरह विरक्त हो चुका है, लेकिन मैं आपके साकार रूप को समझ नहीं पाता हूँ। तो फिर मैं कैसे आपके अपने अंतर में अनुभव किए जाने वाले सुख को समझ सकता हूँ?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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