श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.13.8 
 
 
कृष्णस्य विष्वक् पुरुराजिमण्डलै-
रभ्यानना: फुल्लद‍ृशो व्रजार्भका: ।
सहोपविष्टा विपिने विरेजु-
श्छदा यथाम्भोरुहकर्णिकाया: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे पंखुड़ियों एवं पत्तों से घिरा हुआ कोई कमल-पुष्प कोष होता है, उसी प्रकार बीच में कृष्ण विराजमान थे और उन्हें घेर कर पंक्तियों में उनके मित्र बैठे थे। वे सभी अत्यन्त सुन्दर लग रहे थे। उनमें से हर बालक यह सोच कर कृष्ण की ओर देखने का प्रयास कर रहा था कि शायद कृष्ण भी उसकी ओर देखें। इस प्रकार उन सबों ने जंगल में मध्याह्न भोजन का आनन्द लिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.