यत्र नैसर्गदुर्वैरा: सहासन् नृमृगादय: ।
मित्राणीवाजितावासद्रुतरुट्तर्षकादिकम् ॥ ६० ॥
अनुवाद
वृन्दावन भगवान् का वह दिव्य धाम है जहाँ भूख, क्रोध या प्यास जैसी कोई भी नकारात्मक भावना नहीं है। मनुष्यों और हिंस्र जानवरों में स्वाभाविक रूप से शत्रुता होती है, लेकिन यहाँ वे दिव्य मैत्री-भाव से साथ-साथ रहते हैं।