श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी  »  श्लोक 60
 
 
श्लोक  10.13.60 
 
 
यत्र नैसर्गदुर्वैरा: सहासन् नृमृगादय: ।
मित्राणीवाजितावासद्रुतरुट्‌‌तर्षकादिकम् ॥ ६० ॥
 
अनुवाद
 
  वृन्दावन भगवान् का वह दिव्य धाम है जहाँ भूख, क्रोध या प्यास जैसी कोई भी नकारात्मक भावना नहीं है। मनुष्यों और हिंस्र जानवरों में स्वाभाविक रूप से शत्रुता होती है, लेकिन यहाँ वे दिव्य मैत्री-भाव से साथ-साथ रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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