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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी
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श्लोक 56
श्लोक
10.13.56
ततोऽतिकुतुकोद्वृत्यस्तिमितैकादशेन्द्रिय: ।
तद्धाम्नाभूदजस्तूष्णीं पूर्देव्यन्तीव पुत्रिका ॥ ५६ ॥
अनुवाद
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तदुपरांत उन विष्णु मूर्तियों के तेजतेज से ब्रह्मा की ग्यारह इंद्रियाँ आश्चर्य से क्षुब्ध थीं तथा दिव्य आनंद से स्तब्ध हो चुकी थीं। अतः वे मौन हो गए। मानो किसी ग्राम्य देवता की उपस्थिति में किसी बच्चे की मिट्टी की बनी गुड़िया हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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