श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.13.26 
 
 
व्रजौकसां स्वतोकेषु स्‍नेहवल्‍ल्याब्दमन्वहम् ।
शनैर्नि:सीम ववृधे यथा कृष्णे त्वपूर्ववत् ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि व्रजभूमि के सभी निवासियों, अर्थात् ग्वालों और गोपियों को, पहले से ही कृष्ण के प्रति अपने पुत्रों से अधिक स्नेह था, किंतु अब, एक वर्ष तक, उनके अपने पुत्रों के प्रति यह स्नेह निरंतर बढ़ता ही गया क्योंकि अब कृष्ण उनके पुत्र बन चुके थे। अपने पुत्रों के प्रति, जो कि अब कृष्ण ही थे, उनके प्रेम की वृद्धि का कोई अंत नहीं था। प्रतिदिन वे अपने पुत्रों से कृष्ण जितना प्रेम करने की नई प्रेरणा प्राप्त कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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