यद्यपि व्रजभूमि के सभी निवासियों, अर्थात् ग्वालों और गोपियों को, पहले से ही कृष्ण के प्रति अपने पुत्रों से अधिक स्नेह था, किंतु अब, एक वर्ष तक, उनके अपने पुत्रों के प्रति यह स्नेह निरंतर बढ़ता ही गया क्योंकि अब कृष्ण उनके पुत्र बन चुके थे। अपने पुत्रों के प्रति, जो कि अब कृष्ण ही थे, उनके प्रेम की वृद्धि का कोई अंत नहीं था। प्रतिदिन वे अपने पुत्रों से कृष्ण जितना प्रेम करने की नई प्रेरणा प्राप्त कर रहे थे।