श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.13.2 
 
 
सतामयं सारभृतां निसर्गो
यदर्थवाणीश्रुतिचेतसामपि ।
प्रतिक्षणं नव्यवदच्युतस्य यत्
स्त्रिया विटानामिव साधुवार्ता ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  जीवन के सार को अपनाने वाले परमहंस भक्त अपने अंत:करण से कृष्ण के प्रति अनुरक्त होते हैं और कृष्ण ही उनके जीवन के लक्ष्य होते हैं। हर पल कृष्ण की चर्चा करना ही उनका स्वभाव होता है, मानो ये कथाएँ हमेशा नई लगती हों। वे इन कथाओं के प्रति उसी तरह आकर्षित रहते हैं जैसे भौतिकतावादी लोग स्त्रियों और कामुकता से जुड़ी बातों में आनंद लेते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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