भारतैवं वत्सपेषु भुञ्जानेष्वच्युतात्मसु ।
वत्सास्त्वन्तर्वने दूरं विविशुस्तृणलोभिता: ॥ १२ ॥
अनुवाद
हे महाराज परीक्षित, जंगल में जहाँ एक ओर ग्वालबाल, जो अपने हृदय में कृष्ण के अलावा किसी और को नहीं जानते थे, अपने मध्याह्न भोजन में व्यस्त थे, वहीं दूसरी ओर हरी घास के आकर्षण में आकर बछड़े दूर घने जंगल में चरने चले गए।