श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.13.11 
 
 
बिभ्रद् वेणुं जठरपटयो: श‍ृङ्गवेत्रे च कक्षे
वामे पाणौ मसृणकवलं तत्फलान्यङ्गुलीषु ।
तिष्ठन् मध्ये स्वपरिसुहृदो हासयन् नर्मभि: स्वै:
स्वर्गे लोके मिषति बुभुजे यज्ञभुग् बालकेलि: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  कृष्ण यज्ञ-भुक् हैं, अर्थात् वे केवल यज्ञ की आहुतियों का भक्षण करते हैं, किन्तु अपनी बाल लीलाओं को प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने अपनी वंशी को अपनी कमर और दाहिनी ओर कसे वस्त्र के बीच तथा सींग के बिगुल और गाय चराने की लाठी को बाईं ओर खोंस रखा था। उन्होंने अपने हाथ में दही और चावल का बना हुआ स्वादिष्ट व्यंजन ले रखा था और अपनी अँगुलियों के बीच में उपयुक्त फलों के टुकड़े दबा रखे थे। वे कमल के फूल की कली की तरह बैठे थे और अपने सभी मित्रों की ओर देख रहे थे। वे खाते हुए उनसे हँसी-मज़ाक भी कर रहे थे, जिससे वे सभी ठहाके लगा रहे थे। उस समय स्वर्ग के निवासी यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि यज्ञ भुक् भगवान अब अपने मित्रों के साथ जंगल में बैठ कर भोजन कर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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