श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 12: अघासुर का वध  »  श्लोक 7-11
 
 
श्लोक  10.12.7-11 
 
 
केचिद्वेणून्वादयन्तो ध्मान्त: श‍ृङ्गाणि केचन ।
केचिद्भृङ्गै: प्रगायन्त: कूजन्त: कोकिलै: परे ॥ ७ ॥
विच्छायाभि: प्रधावन्तो गच्छन्त: साधु हंसकै: ।
बकैरुपविशन्तश्च नृत्यन्तश्च कलापिभि: ॥ ८ ॥
विकर्षन्त: कीशबालानारोहन्तश्च तैर्द्रुमान् ।
विकुर्वन्तश्च तै: साकं प्लवन्तश्च पलाशिषु ॥ ९ ॥
साकं भेकैर्विलङ्घन्त: सरित: स्रवसम्प्लुता: ।
विहसन्त: प्रतिच्छाया: शपन्तश्च प्रतिस्वनान् ॥ १० ॥
इत्थं सतां ब्रह्मसुखानुभूत्या
दास्यं गतानां परदैवतेन ।
मायाश्रितानां नरदारकेण
साकं विजह्रु: कृतपुण्यपुञ्जा: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  सारे बालक अलग-अलग कामों में मगन थे। कुछ अपनी बाँसुरी बजा रहे थे, कुछ सींग के बिगुल बजा रहे थे। कुछ भौरों की गुंजार की नकल उतार रहे थे तो कुछ कोयल की कुहू-कुहू की आवाज़ की नकल कर रहे थे। कुछ बालक उड़ती चिड़ियों की ज़मीन पर पड़ती हुई परछाइयों के पीछे दौड़ रहे थे और उनकी नकल उतार रहे थे, तो कुछ हंसों की सुंदर चाल और उनकी आकर्षक मुद्राओं की नकल उतार रहे थे। कुछ चुपचाप बगुला के पास बैठ गए और अन्य बालक मोर के नाच की नकल करने लगे। कुछ बालकों ने पेड़ों के बंदरों को आकर्षित किया, कुछ इन बंदरों की नकल करते हुए पेड़ों पर कूदने लगे। कुछ बंदरों जैसा मुँह बनाने लगे और कुछ एक डाल से दूसरी डाल पर कूदने लगे। कुछ बालक झरने के पास गए और मेंढकों के साथ उछलते हुए नदी पार की और पानी में अपनी परछाई देखकर वे हँसने लगे। वे अपनी प्रतिध्वनि की आवाज़ पर हँसते थे। इस तरह सारे बालक उन कृष्ण के साथ खेलते थे जो ब्रह्म ज्योति में लीन होने के इच्छुक ज्ञानियों के लिए उसके उद्गम हैं और उन भक्तों के लिए ईश्वर हैं जिन्होंने नित्य-दासता स्वीकार कर रखी है, लेकिन आम लोगों के लिए वे एक सामान्य बालक ही हैं। गोप बालकों ने कई जन्मों के पुण्य-कर्मों का फल इकट्ठा कर रखा था फलस्वरूप वे इस तरह ईश्वर के साथ रह रहे थे। भला उनके इस महा-भाग्य का वर्णन कौन कर सकता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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