सारे बालक अलग-अलग कामों में मगन थे। कुछ अपनी बाँसुरी बजा रहे थे, कुछ सींग के बिगुल बजा रहे थे। कुछ भौरों की गुंजार की नकल उतार रहे थे तो कुछ कोयल की कुहू-कुहू की आवाज़ की नकल कर रहे थे। कुछ बालक उड़ती चिड़ियों की ज़मीन पर पड़ती हुई परछाइयों के पीछे दौड़ रहे थे और उनकी नकल उतार रहे थे, तो कुछ हंसों की सुंदर चाल और उनकी आकर्षक मुद्राओं की नकल उतार रहे थे। कुछ चुपचाप बगुला के पास बैठ गए और अन्य बालक मोर के नाच की नकल करने लगे। कुछ बालकों ने पेड़ों के बंदरों को आकर्षित किया, कुछ इन बंदरों की नकल करते हुए पेड़ों पर कूदने लगे। कुछ बंदरों जैसा मुँह बनाने लगे और कुछ एक डाल से दूसरी डाल पर कूदने लगे। कुछ बालक झरने के पास गए और मेंढकों के साथ उछलते हुए नदी पार की और पानी में अपनी परछाई देखकर वे हँसने लगे। वे अपनी प्रतिध्वनि की आवाज़ पर हँसते थे। इस तरह सारे बालक उन कृष्ण के साथ खेलते थे जो ब्रह्म ज्योति में लीन होने के इच्छुक ज्ञानियों के लिए उसके उद्गम हैं और उन भक्तों के लिए ईश्वर हैं जिन्होंने नित्य-दासता स्वीकार कर रखी है, लेकिन आम लोगों के लिए वे एक सामान्य बालक ही हैं। गोप बालकों ने कई जन्मों के पुण्य-कर्मों का फल इकट्ठा कर रखा था फलस्वरूप वे इस तरह ईश्वर के साथ रह रहे थे। भला उनके इस महा-भाग्य का वर्णन कौन कर सकता है?