श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 12: अघासुर का वध  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.12.5 
 
 
मुष्णन्तोऽन्योन्यशिक्यादीन्ज्ञातानाराच्च चिक्षिपु: ।
तत्रत्याश्च पुनर्दूराद्धसन्तश्च पुनर्ददु: ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  सारे ग्वालबाल एक-दूसरे के खाने की पोटलियाँ आपस में चुराते थे। जब कोई बालक को पता चलता कि उसकी पोटली चुरा ली गयी है, तो दूसरे बालक उसे कहीं दूर उछाल देते और वहाँ पर खड़े बालक उसे और भी दूर उछाल देते थे। जब पोटली का मालिक निराश हो जाता तो दूसरे बालक हँसते और मालिक रो देता तब वह पोटली उसे वापस दे देते थे।
 
 
 
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