श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 12: अघासुर का वध  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  10.12.44 
 
 
श्रीसूत उवाच
इत्थं स्म पृष्ट: स तु बादरायणि-
स्तत्स्मारितानन्तहृताखिलेन्द्रिय: ।
कृच्छ्रात् पुनर्लब्धबहिर्द‍ृशि: शनै:
प्रत्याह तं भागवतोत्तमोत्तम ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  संतों एवं भक्तों में श्रेष्ठ शौनक, जब महाराज परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से इस प्रकार प्रश्न किया, तब शुकदेव गोस्वामी ने तुरंत अपनी इन्द्रियों के कार्यों से अपना बाहरी सम्पर्क तोड़ लिया और अपने हृदय में कृष्ण-लीलाओं का स्मरण करने लगे। इसके पश्चात्, बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी बाहरी चेतना को वापस प्राप्त किया और महाराज परीक्षित से कृष्ण-कथा के विषय में बातें करने लगे।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत बारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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