श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 12: अघासुर का वध  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  10.12.43 
 
 
वयं धन्यतमा लोके गुरोऽपि क्षत्रबन्धव: ।
वयं पिबामो मुहुस्त्वत्त: पुण्यं कृष्णकथामृतम् ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे प्रभु, मेरे आध्यात्मिक गुरु, यद्यपि हम क्षत्रियों में सबसे निम्न हैं, फिर भी हम भाग्यशाली हैं और लाभान्वित हुए हैं क्योंकि हमें आपसे भगवान् के अमृतमय पवित्र कृत्यों को लगातार सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.