श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 12: अघासुर का वध  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  10.12.28 
 
 
कृत्यं किमत्रास्य खलस्य जीवनं
न वा अमीषां च सतां विहिंसनम् ।
द्वयं कथं स्यादिति संविचिन्त्य
ज्ञात्वाविशत्तुण्डमशेषद‍ृग्घरि: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  अब क्या उपाय करना चाहिए? इस राक्षस का वध और भक्तजनों की रक्षा दोनों एक साथ कैसे हो सकती है? असीम शक्तिशाली होने के कारण कृष्ण ने ऐसी कोई बुद्धिमानी से भरी युक्ति आने तक प्रतीक्षा करने का निर्णय किया जिससे वे बच्चों को बचाने के साथ-साथ उस राक्षस का वध भी कर सकें। इसके बाद वे अघासुर के मुँह में प्रवेश कर गए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.