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श्लोक 6
श्लोक
10.11.6
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्ना बद्धं स्वमात्मजम् ।
विलोक्य नन्द: प्रहसद्वदनो विमुमोच ह ॥ ६ ॥
अनुवाद
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जब नन्द महाराजने अपने पुत्र कृष्ण को रस्सियों से लकड़ी की ओखली से बंधे और ओखली को घसीटते हुए देखा, तो वे मुस्कुराए और कृष्ण को बंधन से मुक्त कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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