श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 11: कृष्ण की बाल-लीलाएँ  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  10.11.43 
 
 
गृहीत्वापरपादाभ्यां सहलाङ्गूलमच्युत: ।
भ्रामयित्वा कपित्थाग्रे प्राहिणोद्गतजीवितम् ।
स कपित्थैर्महाकाय: पात्यमानै: पपात ह ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  तदुपरांत श्रीकृष्ण ने असुर की पीछे की टाँगें और पूँछ पकड़ ली और जोर से चक्कर घुमाते रहे, जब तक कि वह असुर मर नहीं गया। इसके बाद उसे कैथा के पेड़ की चोटी पर फेंक दिया। वह वृक्ष उस असुर के विशाल शरीर के भार से नीचे गिर पड़ा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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