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श्लोक 25
श्लोक
10.11.25
चक्रवातेन नीतोऽयं दैत्येन विपदं वियत् ।
शिलायां पतितस्तत्र परित्रात: सुरेश्वरै: ॥ २५ ॥
अनुवाद
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फिर एक बार राक्षस त्रणावर्त बवंडर का रूप धरकर बालक को संकटपूर्ण आकाश में मारने के लिए उठा ले गया, परंतु राक्षस पत्थर की शिला पर गिर पड़ा। तब भी भागवान विष्णु अथवा उनके संगियों की कृपा से बालक बच गया था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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