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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 1: भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार: परिचय
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श्लोक 67
श्लोक
10.1.67
मातरं पितरं भ्रातृन् सर्वांश्च सुहृदस्तथा ।
घ्नन्ति ह्यसुतृपो लुब्धा राजान: प्रायशो भुवि ॥ ६७ ॥
अनुवाद
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इस पृथ्वी पर इन्द्रियतृप्ति के लालची राजा अक्सर अपने दुश्मनों का वध अंधाधुंध रूप से करते हैं। वो अपनी सनक को संतुष्ट करने के लिए किसी को भी मार सकते हैं, चाहे वो उनकी माता, पिता, भाई या मित्र ही क्यों न हों।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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