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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 1: भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार: परिचय
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श्लोक 61
श्लोक
10.1.61
तथेति सुतमादाय ययावानकदुन्दुभि: ।
नाभ्यनन्दत तद्वाक्यमसतोऽविजितात्मन: ॥ ६१ ॥
अनुवाद
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वसुदेव मान गए और अपने पुत्र को घर ले आए, परंतु चूंकि कंस चरित्रहीन और संयमहीन व्यक्ति था, इसलिए वसुदेव जानते थे कि कंस की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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