अग्नेर्यथा दारुवियोगयोगयो-रदृष्टतोऽन्यन्न निमित्तमस्ति ।
एवं हि जन्तोरपि दुर्विभाव्य:शरीरसंयोगवियोगहेतु: ॥ ५१ ॥
अनुवाद
जब किसी अनदेखे कारण से आग लकड़ी के एक टुकड़े को जला के दूसरे टुकड़े को आग लगाती है तो उसकी वजह नियति होती है। उसी प्रकार जीव जब एक प्रकार के शरीर को स्वीकार कर दूसरे को त्यागता है, तो इसके पीछे भी किसी अदृश्य नियति के सिवा कोई दूसरा कारण नहीं होता है।