श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 1: भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार: परिचय  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  10.1.40 
 
 
व्रजंस्तिष्ठन् पदैकेन यथैवैकेन गच्छति ।
यथा तृणजलौकैवं देही कर्मगतिं गत: ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  जिस तरह कोई व्यक्ति सड़क पर चलते हुए एक पैर जमीन पर टिकाता है और फिर दूसरे पैर को उठा लेता है, या जिस तरह सब्जी पर कोई कीड़ा, एक पत्ती से दूसरी पत्ती पर खुद को स्थानांतरित कर लेता है, उसी प्रकार बद्ध आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर का आश्रय लेती है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.