श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 1: भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार: परिचय  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.1.4 
 
 
निवृत्ततर्षैरुपगीयमानाद्भवौषधाच्छ्रोत्रमनोऽभिरामात् ।
क उत्तमश्लोकगुणानुवादात्पुमान् विरज्येत विना पशुघ्नात् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान के गुणों का वर्णन परंपरागत तरीके से किया जाता है, यानी कि आध्यात्मिक गुरु से शिष्य तक पहुंचाया जाता है। ऐसे वर्णन का आनंद उन लोगों को मिलता है जिन्हें इस संसार की मिथ्या, क्षणिक महिमा में कोई रुचि नहीं है। भगवान के गुणगान जन्म-मृत्यु के चक्र में फँसे जीवों के लिए सबसे अच्छी दवा है। इसलिए, कसाई (पशुओं को मारने वाला) या खुद को मारने वाला (आत्महत्या करने वाला) के अलावा भगवान का गुणगान कौन नहीं सुनना चाहेगा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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