भूमिर्दृप्तनृपव्याजदैत्यानीकशतायुतै: ।
आक्रान्ता भूरिभारेण ब्रह्माणं शरणं ययौ ॥ १७ ॥
अनुवाद
एक बार माता पृथ्वी ने जब अपने ऊपर विराजित राजाओं के वेश में रहने वाले गर्वित असुरों की सेना के बढ़ते बोझ के कारण संकट का अनुभव किया तो वह इससे मुक्ति पाने हेतु भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुँची।