कृष्णं च तत्प्रभावज्ञ आसीनं जगदीश्वरम् ।
हृदिस्थं पूजयामास माययोपात्तविग्रहम् ॥ १० ॥
अनुवाद
भगवान श्रीकृष्ण हर किसी के हृदय में निवास करते हैं। फिर भी, वे अपनी आंतरिक शक्ति से अपना दिव्य रूप प्रकट करते हैं। ऐसे भगवान स्वयं भीष्मदेव के सामने बैठे हुए थे। और चूँकि भीष्मदेव उनकी महिमा से अवगत थे, इसलिए उन्होंने विधिवत उनकी पूजा की।