अन्त:स्थ: सर्वभूतानामात्मा योगेश्वरोहरि: ।
स्वमाययावृणोद्गर्भं वैराट्या: कुरुतन्तवे ॥ १४ ॥
अनुवाद
सर्वोच्च योगेश्वर श्री कृष्ण प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में परमात्मा के रूप में वास करते हैं। इसलिए, कुरु वंश की सन्तान की रक्षा करने के लिए उन्होंने अपनी निजी ऊर्जा से उत्तरा के गर्भ को ढँक दिया।