श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.7.36 
 
 
मत्तं प्रमत्तमुन्मत्तं सुप्तं बालं स्त्रियं जडम् ।
प्रपन्नं विरथं भीतं न रिपुं हन्ति धर्मवित् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  धर्म के सिद्धान्तों को जानने वाला व्यक्ति ऐसे शत्रु का वध नहीं करता जो असावधान, मादक द्रव्यो के सेवन से उन्मत्त, पागल, सो रहा हो, भयभीत हो या जिसका रथ नष्ट हो गया हो। वह किसी बालक, स्त्री, मूर्ख प्राणी या आत्मसमर्पण करने वाले प्राणी का भी वध नहीं करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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