श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.7.2 
 
 
सूत उवाच
ब्रह्मनद्यां सरस्वत्यामाश्रम: पश्चिमे तटे ।
शम्याप्रास इति प्रोक्त ऋषीणां सत्रवर्धन: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री सूत ने कहा: वेदों से प्रगाढ़ रूप से जुड़ी सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर शम्याप्रास नामक स्थान पर एक आश्रम है, जो ऋषियों के दिव्य कार्यों को प्रोत्साहित करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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